भारत और ब्रिटेन ने पहले विश्व युद्ध में शहीद हुए सैनिकों को श्रद्धांजलि दी
आर्मिस्टिस डे के 100वें वर्ष को यादगार बनाने के लिए युनाइटेड सर्विस इंस्टिट्यूशन ऑफ इंडिया द्वारा ब्रिटिश उच्चायोग के सहयोग से पहले विश्वयुद्ध में भारतीय सेना के योगदान का स्मरणोत्सव मनाने के लिए 11 नवंबर के सप्ताहांत में कार्यक्रमों की श्रृंखला की मेजबानी की जा रही है।
युद्ध में भारत की भूमिका महत्वपूर्ण थी - 1.3 मिलियन से अधिक भारतीय सैनिक यूरोप, मध्य पूर्व और पूर्वी अफ्रीका के युद्ध क्षेत्रों में लड़े थे, जिसकी वजह से राष्ट्रमंडल में भारत का योगदान सबसे बड़ा और सबसे व्यापक था। भारत ने युद्ध में 3.7 मिलियन टन आपूर्ति और 170,000 जानवरों सहित आज के पैसे के हिसाब से 20 बिलियन डॉलर से अधिक का योगदान भी किया था।
इस बड़े योगदान का स्मरणतोस्व मनाने और पूरे युद्ध में सभी सैनिकों और महिलाओं के बलिदान को याद करने के लिए, यूनाइटेड सर्विस इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (यूएसआई) और ब्रिटिश उच्चायोग द्वारा संयुक्त रूप से निम्नलिखित कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है:
शुक्रवार, 9 नवंबर
ऐतिहासिक सेमिनार: “भारत और अनुसंधान, स्मृति और स्मरणोत्सव में ग्रेट वॉर - पहले विश्वयुद्ध में भारत का योगदान”। यह कार्यक्रम यूके नेशनल आर्मी संग्रहालय द्वारा समर्थित है और इसमें भारत, ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया के गेस्ट एकेडमिक स्पीकर्स मौजूद होंगे।
शनिवार 10 नवंबर
गुरखा ब्रिगेड बैंड और रॉयल इंजीनियर्स के नॉटिंघमशायर बैंड के सदस्यों द्वारा भारत के ब्रिटिश उच्चायुक्त सर डोमिनिक एस्क्विथ के निवास पर सनसेट म्यूजिक कंसर्ट। इसके बाद इवनिंग रिसेप्शन का आयोजन किया जाएगा जिसमें विदेश मामलों की समिति के चेयरमैन और भारतीय सेना के पूर्व अधिकारी टॉम तुगंधात, एमपी द्वारा प्रथम विश्व युद्ध में लड़ने वाले भारतीय रेजिमेंट्स की वॉर डायरी को प्रस्तुत किया जाएगा।
रविवार 11 नवंबर
दिल्ली वॉर सिमेट्री में स्मरणोत्सव की मल्टी-फेथ-सर्विस।
तुगंधात ने कहा:
इस महत्वपूर्ण अवसर पर यहां भारत में उपस्थित होकर और भारत वापस न आने वाले 74,000 लोगों सहित स्वतंत्रता के लिए अपने जीवन का बलिदान देने वालों को श्रद्धांजलि अर्पित करने का अवसर पाकर मैं गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं। युद्ध में भारत के उल्लेखनीय योगदान का सम्मान किया जाना चाहिए क्योंकि इसने इतिहास को बदल दिया था।
सेंटर ऑफ आर्म्ड फोर्सेज हिस्टोरिकल रिसर्च ऑफ यूएसआई इंस्टीट्यूट के सेक्रेटरी और एडिटर स्क्वाड्रन लीडर राना टीएस चिन्ना ने कहा:
यह बहुत गर्व की बात है कि आधुनिक इतिहास को बदलने वाले युद्ध में बेहद महत्वपूर्ण भारतीय योगदान को अंततः सम्मानित किया जा रहा है जिसके लिए वह पूरी तरह से योग्य हैं। भारतीय सैनिक को अपने योगदान के लिए अभारोक्ति और अपने बलिदान के लिए श्रद्धांजलि और इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान के योग्य हैं।
यूके के साथ हमारा संयुक्त स्मारक प्रयास स्मरणोत्सव और श्रद्धांजलि की प्रक्रिया है जो हमारे साझा मूल्यों और हमारी साझा विरासत को उजागर करती है।
ब्रिटिश उच्चायोग के सुरक्षा सलाहकार मार्क गोल्डसैक ने कहा:
यह स्मरणोत्सव समाज के रूप में हमारी तरफ से हर तरह की पृष्ठभूमि वाले सभी सैनिकों द्वारा दिए गए बलिदान के सम्मान का अवसर है। यह संघर्ष की राजनीति से संबंधित नहीं है बल्कि यह उन लोगों के आत्म-बलिदान का सम्मान है जिन्होने करने के बारे में है जिन्होंने इसकी असली कीमत चुकाई थी।
यह प्रथम विश्व युद्ध में भारतीय योगदान को चिन्हित और उजागर करने वाले महत्वपूर्ण चारवर्षीय परियोजना का समापन है। उच्चायोग आर्मिस्टिस की शताब्दी को चिह्नित करने के क्रम में इन कार्यक्रमों का आयोजन करने के लिए युनाइटेड सर्विस इंस्टिट्यूशन ऑफ इंडिया के साथ मिलकर काम कर रहा है।
स्मरणोत्सव के अंतर्गत, यूएसआई ने भारत के लिए यादों के प्रतीक के तौर पर मैरीगोल्ड को चुना है - जिसे भारत में उसकी शानदार प्रकृति और बलिदान को दर्शाने वाले उसके केसरिया रंग के कारण चुना गया है।
आगे की जानकारी
वार डायरी घटनाओं का एक आधिकारिक रिकॉर्ड होती है जिसे युद्ध के दौरान तैयार किया जाता है। इसमें रुटीन ऑर्डर, ऑपरेशनल ऑर्डर तथा ऐडमिनिस्ट्रेटिव ऑर्डर शामिल होते हैं। यह मोर्चे पर मौजूद रेजिमेंट के जीवन की ऐतिहासिक झलक मिलती है।
प्रथम विश्व युद्ध में भारतीय सैनिकों द्वारा ग्यारह विक्टोरिया क्रॉस (ब्रिटिश ऑनर सिस्टम का सर्वोच्च अवॉर्ड) जीता गया था: इनमें से दो नेपाली नागरिक थे और तीन ऐसे सैनिक थे जिनका जन्मस्थान आज पाकिस्तान के हिस्से में पड़ता है।
प्रथम विश्व युद्ध में 13 लाख से अधिक भारतीय सैनिक लड़े थे और 74 हजार से अधिक शहीद हुए थे।
इसमे भारतीय थल सेना तो प्रमुख थी ही, लेकिन भारतीय नौ सेना का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा और आर्मी फ्लाइंग कॉर्प्स में भारतीयों ने भी अपनी सेवा दी। बंगाल से लेबर बटालियन की भी नियुक्ति की गई थी।
भारतीय थल सेना की विशिष्टता इस बात में भी रही है कि वह फ्रांस और फ्लैंडर्स, गैलीपॉली के ऐंजैक्स (ANZACs), मेसोपोटैमिया, फिलिस्तीन और उत्तरी अफ्रीका सहित युद्ध के लगभग सभी मोर्चें पर शामिल हुई थी।
प्रथम विश्वयुद्ध की शुरूआत 28 जुलाई 1914 को हुई और यह 11 नवम्बर 1918 को समाप्त हुआ।इसमें दुनिया भर की सभी बड़ी शक्तियां शामिल हुईं थीं, 7 करोड़ सैनिकों ने इन युद्ध में हिस्सा लिया जिनमें से 90 लाख शहीद हुए। आर्मिस्टिस डे 11 नवंबर 1918 को सहयोगियों और जर्मनी द्वारा हस्ताक्षरित आर्मिस्टिस ट्रीटी को दर्शाता है।
पूरे भारत में ब्रिटिश उप उच्चायोगों द्वारा सालगिरह की याद में विभिन्न आयोजन किए जाएंगे।
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