विश्व की समाचार कथा

बदलते जल-चक्र को समझने के लिए ब्रिटेन-भारत सहयोग

शोधकर्ताओं की पांच टीमें इस सप्ताह नई दिल्ली में अपनी परियोजनाओं के नतीजे साझा करने के लिए एकत्र होंगी।

यह 2015 to 2016 Cameron Conservative government के तहत प्रकाशित किया गया था
RCUK Changing water cycle event

ब्रिटेन की नेचुरल इनवायरनमेंट रिसर्च काउंसिल (एनईआरसी) तथा भारत के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (एमओईएस) द्वारा बदलते जल-चक्र को समझने के लिए उच्च-गुणवत्ता के ब्रिटिश-भारतीय शोध को संयुक्त रूप से वित्तीय सहायता प्रदान की गई है। इस सहभागिता के तहत वित्तपोषित ब्रिटिश-भारतीय शोधकर्ताओं की पांच टीमें इस सप्ताह नई दिल्ली में अपनी परियोजनाओं के परिणाम साझा करने के लिए एकत्र होंगी।

एनईआरसी-एमओईएस के इस संयुक्त बदलते जल-चक्र कार्यक्रम की शुरुआत 2010 में की गई थी जिसका लक्ष्य था भारत में बदलते जल-चक्र की प्रवृत्ति और इसके संभावित प्रभावों को समझना। इस कार्यक्रम के मुख्य परिणाम हैं:

  • इम्पीरियल कॉलेज, लंदन तथा इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस, बंगलुरु के नेतृत्व में एक ब्रिटिश-भारतीय टीम ने जल-व्यवस्थाओं पर जलवायु और जलवायु पर जल-व्यवस्थाओं के प्रभाव के आकलन के लिए नई और परिष्कृत कंप्यूटर मॉडलिंग क्षमताएं निर्मित की हैं।
  • हेरियट-वाट यूनिवर्सिटी, एडिनबर्ग तथा इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, रुड़की के नेतृत्व में एक अन्य टीम ने विस्तृत अनुसंधानों, हितधारकों की संलग्नता, तथा किसानों, नीतिनिर्माताओं, जल-प्रदाताओं तथा विस्तृत समुदायों के साथ जागरुकता-वर्धक कार्यक्रमों के माध्यम से सिंचाई के पानी के प्रबंधन के लिए बेहतर नीतियों का विकास किया है।
  • यूनिवर्सिटी ऑफ डर्हम तथा इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, कानपुर के नेतृत्व में एक सहभागिता ने उत्तरपश्चिमी भारत के भूमिगत जल संसाधनों तथा जलभरण प्रणाली का अबतक का पहला समेकित मूल्यांकन संकलित किया है, जिससे प्रभावी भूमिगत जल प्रबंधन समाधानों के लिए महत्वपूर्ण जानकारियां मिलती हैं।
  • यूनिवर्सिटी ऑफ डंडी, लैनसेस्टर यूनिवर्सिटी तथा अशोका ट्रस्ट फॉर रीसर्च इन इकोलॉजी एंड द इनवायरमेंट के नेतृत्व में एक ब्रिटिश-भारतीय टीम गठित की गई, जिसने अतिवर्षा द्वारा निम्नीकृत इलाकों में जल संसाधनों के प्रबंधन के लिए बेहतर समाधान प्रदान किए हैं।
  • यूनिवर्सिटी ऑफ एक्सेटर, तथा इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, दिल्ली के नेतृत्व में गठित इस ब्रिटिश भारतीय टीम ने हर साल मानसून से प्रभावित लाखों लोगों के लाभ के लिए मानसून के बेहतर पूर्वानुमान करने के लिए उन्नत क्षमता प्रस्तुत की है।

इस सहभागिता की उपलब्धियों तथा निष्कर्षों के आधार पर निर्मित, खाद्य, ऊर्जा तथा पारिस्थितिकी सेवाओं (एसडबल्यूआर) के लिए धारणीय जल संसाधनों के एक कार्यक्रम को एनईआरसी तथा एमओईएस भी सहायता प्रदान कर रहे हैं, जिसे आज नई दिल्ली में शुरू किया गया है।

न्यूटन-भाभा कोष से सहायता-प्राप्त, यह कार्यक्रम भारत में खाद्य, ऊर्जा तथा पारिस्थितिकी सेवाओं में जल-संसाधनों की उन्नत समझ पर केंद्रित अंतरविषयक शोध को सहायता प्रदान करता है। ब्रिटिश तथा भारतीय शोधकर्ता समेकित बेसिन-आधारित मॉडल विकसित करने के लिए तथा भारत के जल संसाधनों के स्थायी विकास को सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से वर्तमान तथा भावी जल-संसाधनों के बारे में अधिक ठोस सूचनाएं उपलब्ध कराने के लिए साथ मिलकर काम करेंगे।

ब्रिटेन द्वारा 3 मिलियन पौंड के निवेश, तथा भारत के संगत संसाधनों से, इस नई सहभागिता के तहत तीन ब्रिटिश-भारतीय परियोजनाओं को सहायता दी गई है- जो भारत के तीन मुख्य भौगोलिक क्षेत्रों में केंद्रित है: हिमालय, सिंधु-गंगा का मैदान तथा प्रायद्वीपीय भारत। ये हैं:

  • हिमालय: बदलती जलवायु में स्थायी हिमालयी जल संसाधन (ससहि-वाट) ब्रिटिश मुख्य निरीक्षक: एडेबायो जॉनसन एडेलोये, हैरियट-वाट यूनिवर्सिटी; भारतीय मुख्य निरीक्षक: सी.एस.पी. ओझा, आईआईटी रुड़की

  • सिंधु-गंगा का मैदान: सिंधु-गंगा के मैदान की अनिश्चितता के तहत जल-प्रबंधन हेतु संयुक्त मानवीय तथा प्राकृतिक तंत्र पर्यावरण (सीएचएएनएसई)। ब्रिटिश मुख्य निरीक्षक: अना मिजिक, इम्पीरियल कॉलेज लंदन; भारतीय मुख्य निरीक्षक: सुबिमल घोष, आईआईटी बॉम्बे

  • प्रायद्वीपीय भारत: प्रायद्वीपीय भारत में स्थायी जल-प्रबंधन के लिए जल-संग्रहण प्रक्रिया का उन्नयन। ब्रिटिश मुख्य निरीक्षक: ग्वाएन हेफिन रीस, एनईआरसी सेंटर फॉर इकोलॉजी एंड हाइड्रोलॉजी; भारतीय मुख्य निरीक्षक: प्रदीप मजुमदार, आईआईएससी बैंगलुरु

प्रोफेसर टिम व्हीलर, एनईआरसी में विज्ञान तथा नवाचार के निदेशक, ने कहा:

ब्रिटिश-भारतीय सहयोग तेजी से बढ़ रहा है और यह दोनों देशों के अनवरत विकास के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। लोगों का जीवन उन्नत बनाने के लिए वैश्विक जल-चक्र को समझना तथा स्थायी जल संसाधन अत्यावश्यक हैं। यह एनईआरसी-एमओईएस शोध-सहभागिता श्रेष्ठ शोधकर्ता-समूहों को साथ लाता है और यह प्रदर्शित करता है कि किस प्रकार ब्रिटेन तथा भारत वैश्विक मुद्दों तथा जीवन पर पड़नेवाले उनके प्रभावों के समाधान के लिए साथ मिलकर काम कर रहे हैं।

आगे के जानकारी

  1. नेचुरल इनवायरमेंट रिसर्च काउंसिल: एनईआरसी पर्यावरण विज्ञान में शोध एवं प्रशिक्षण की व्यवस्था तथा जानकारियों के आदान-प्रदान के वित्तपोषण हेतु ब्रिटेन की मुख्य एजेंसी है। हमारे कार्यों के तहत पर्यावरण, पृथ्वी, जैविक, स्थल एवं जलीय विज्ञान के संपूर्ण क्षेत्र आ जाते हैं, जो गहरे महासागर से लेकर ऊपरी वायुमंडल तथा ध्रुवों से लेकर भूमध्यरेखा तक फैले हैं। एनईआरसी द्वारा विश्व की कुछ अति महत्वपूर्ण शोध परियोजनाओं का संयोजन किया जाता है, जिनके तहत जलवायु-परिवर्तन, मानव-स्वास्थ्य पर पर्यावरण का प्रभाव, पृथ्वी पर जीवन का अनुवांशिक ढांचा, तथा और भी इसी प्रकार के महत्वपूर्ण मुद्दे आते हैं। एनईआरसी एक गैर-विभागीय सार्वजनिक निकाय है और इसे व्यवसाय, नवाचार तथा कौशल विभाग (बीआईएस) से लगभग 370 मिलियन पौंड की वार्षिक सहायता प्राप्त होती है।

  2. अर्थ सिस्टम साइंस ऑर्गनाइजेशन (ईएसएसओ), पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय: ईएसएसओ-एमओईएस राष्ट्र को मानसून पूर्वानुमान तथा अन्य मौसम/ जलवायु प्राचलों, महासागरीय स्थिति, भूकंप, सुनामी तथा पृथ्वी से संबद्ध अन्य घटनाओं के लिए, अच्छी तरह एकीकृत कार्यक्रमों के माध्यम से सबसे बेहतर रूप से संभव सेवाएं उपलब्ध कराने का उत्तरदायित्व निभाता है। मंत्रालय विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी के उपयोग द्वारा महासागरीय संसाधनों (जैविक तथा अजैविक) की खोज तथा दोहन के अलावा अंटार्कटिक/आर्कटिक एवं दक्षिणी महासागर के अनुसंधान में भी मुख्य भूमिका निभा रहा है। यह मंत्रालय सम्मिलित रूप से वायुमंडलीय विज्ञानों, महासागरीय विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी और भूकंप-विज्ञान पर भी कार्य करता है।

  3. रिसर्च काउंसिल यूके (आरसीयूके) इंडिया: आरसीयूके इंडिया, जिसे 2008 में शुरू किया गया था, उच्च-गुणवत्ता तथा उच्च-प्रभावी शोध सहभागिता के माध्यम से भारत एवं ब्रिटेन के बेहतरीन शोधकर्ताओं को एक साथ लाता है। आरसीयूके इंडिया, जो ब्रिटिश उच्चायोग, नई दिल्ली में अवस्थित है, ने ब्रिटेन, भारत एवं तृतीय पक्षों के संयुक्त रूप से वित्तपोषित प्रयासों को सहायता प्रदान की है, जो बढ़कर 200 मिलियन पौंड तक पहुंच गया है। शोध सहभागिताओं में ज्यादातर ब्रिटेन तथा भारत के औद्योगिक सहयोगियों के साथ गहन रूप से संबद्ध हैं, जिनमें 90 से ज्यादा सहयोगी शोधकार्यों से भी जुड़े हुए हैं।

आरसीयूके इंडिया ऊर्जा, जलवायु-परिवर्तन, सामाजिक विज्ञानों, स्वास्थ्य-सेवाओं तथा जीवन-विज्ञानों जैसी वैश्विक चुनौतियों के समाधान से संबद्ध शोध-विषयों के एक व्यापक क्षेत्र पर सात बड़े भारतीय शोध वित्तपोषकों के साथ संयुक्त रूप से वित्तपोषित शोध-कार्यक्रमों से सक्रिय रूप से जुड़ा हुआ है।

मीडिया प्रश्नों के लिए संपर्क करें:

जिनि ज्य़ॉर्ज शाजू
संचार तथा कार्यक्रम प्रबंधक
टेलीफोन: 011-24192637

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प्रकाशित 18 May 2016