ब्रिटेन-भारत एंटी-माइक्रोबियल प्रतिरोध से निपटने के लिए मिलकर काम कर रहे हैं
यूके-भारत एंटी-माइक्रोबियल प्रतिरोध साझेदारी की अगुआई यूके रिसर्च काउंसिल और भारत के डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी द्वारा की जा रही है।
एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस (एएमआर) के ब्रिटेन-भारत स्ट्रेटेजिक ग्रुप ने तेजी से बढ़ते इस गंभीर वैश्विक खतरे से निपटने व परस्पर शोध प्राथमिकताओं पर चर्चा करने के लिए आज नई दिल्ली में अपनी दूसरी बैठक आयोजित की। उन्होनें पिछले नंवबर में ब्रिटेन के विश्वविद्यालय, विज्ञान तथा अनुसंधान मंत्री जो जॉनसन और विज्ञान और प्रौद्योगिकी और पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन तथा पृथ्वी विज्ञान मंत्री डॉ. हर्षवर्धन द्वारा शुरू की गई एएमआर में ब्रिटेन-भारत की साझेदारी की प्रगति का मूल्यांकन भी किया।
यूके-भारत एएमआर साझेदारी की अगुआई यूके रिसर्च काउंसिल और भारत के डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी द्वारा की जा रही है। दोनों रिसर्च काउन्सिल यूके (आरसीयूके) और डीबीटी नोडल एजेंसियां हैं जो विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद व पर्यावरण मंत्रालय, वन और जलवायु परिवर्तन जैसे भारत के अन्य अनुसंधान वित्तपोषण भागीदारों के साथ मिलकर इस पहल को समायोजन कर रही हैं।
रणनीतिक समूह ने नवंबर 2016 में अपनी पहली बैठक के बाद हुई प्रगति की सराहना की, भारत में एएमआर अनुसंधान पर सफलतापूर्वक मैपिंग रिपोर्ट तैयार की, जिसे पिछले हफ्ते दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान ब्रिटेन के विश्वविद्यालय, विज्ञान तथा अनुसंधान मंत्री जो जॉनसन और भारत के केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी तथा पृथ्वी विज्ञान राज्यी मंत्री श्री वाई एस चौधरी द्वारा जारी किया गया। इस कार्यक्रम में नोबेल पुरस्कार विजेता और रॉयल सोसाइटी के अध्यक्ष सर वेंकटरामन रामकृष्णन, डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी के सचिव प्रोफेसर के विजयराघवन और भारत के ब्रिटिश उच्चायुक्त सर डोमिनिक एस्क्विथ भी उपस्थित थे।
यह रिपोर्ट आरसीयूके इंडिया की वेबसाइट पर उपलब्ध है।
दोनों मंत्रियों ने संयुक्त रिपोर्ट और एएमआर से संबंधित आरसीयूके-डीबीटी की साझेदारी का का स्वागत किया। रिपोर्ट से विशेष तौर पर अधिक बीमारियों का सामना करने वाले देशों से संबंधित हमारी समझ में अंतर की पहचान होती है, और यह दर्शाती है कि हम पर्यावरण, औद्योगिक अपशिष्ट, खेती की प्रणाली और कीमती एंटीबायोटिक दवाओं के बारें में लोगों की समझ व उपयोग जैसी संभावित कार्रवाई के महत्वपूर्ण क्षेत्रों को भरने के लिए बहुविषयक अनुसंधान का उपयोग कर सकते हैं।
रणनीतिक समूह ने यूके और भारत के उन एएमआर अनुसंधान विशेषज्ञों का भी स्वागत किया जो एमआर रिसर्च हेतु प्रस्ताव बनाने के लिए इस हफ्ते सैंडपिट-स्टाइल वर्कशॉप में भाग लेंगे। इस वर्कशॉप का आयोजन आरसीयूके और डीबीटी द्वारा 7 से 10 नवंबर तक दिल्ली एनसीआर में किया जाएगा और यह एएमआर के विभिन्न पहलुओं में अनुसंधान हेतु अंतःविषय अनुसंधान टीमों व संयुक्त प्रस्तावों के निर्माण के लिए एक मंच के रूप में कार्य करेगा।
न्यूटन भाभा फंड के अंतर्गत 13 मिलियन अमरीकी डालर का संयुक्त वित्तपोषण किया गया है, जिसका उपयोग इस कार्यशाला के तहत वित्त पोषित परियोजनाओं पर किया जाएगा।
डीबीटी के सचिव प्रोफेसर के विजयराघवन, ने कहा:
भारत के परिप्रेक्ष्य से एएमआर की चुनौतियां काफी व्यापक हैं क्योंकि यह केवल एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग के आसपास ही नहीं बल्कि प्रचलन, पशुपालन उद्योग में एंटीबायोटिक दवाओं के प्रयोग के और औद्योगिक कचरे के आसपास केंद्रित है ये सब मिलकर खाद्य श्रृंखला और सार्वजनिक जल आपूर्ति को प्रभावित करते हैं, जिससे स्वास्थ्य संबंधित गंभीर खतरे पैदा होते हैं। हमारे अनुसंधान का प्रयास एएमआर का पता लगाना, निदान करना और इसके प्रसार को रोकना है। इन प्रयासों को आगे बढ़ाने के लिए हमारी अंतर्राष्ट्रीय भागीदारी महत्वपूर्ण हैं।
आरसीयूके के इंटरनेशनल एंड इंटरडिसीप्लिनरी रिसर्च के निदेशक प्रोफेसर स्टुअर्ट टैबर्नर ने कहा:
एएमआर जैसी वैश्विक चुनौतियों का सामना मजबूत, सहयोगात्मक अनुसंधान भागीदारी के द्वारा किया जा सकता है, जैसा यूके-भारत एएमआर के विभिन्न पहलों के माध्यम से प्रदर्शित कर रहे हैं। संयुक्त मैपिंग रिपोर्ट हमारी समझ में अंतर को चिन्हित करती है लेकिन मुझे उम्मीद है कि इंटरेक्टिव वर्कशॉप में विकसित किए जाने वाले कुछ प्रस्तावों के माध्यम से इस अंतर को पूरा करने में सहायता मिलेगी।
आगे की जानकारी
2008 में प्रारंभ किए गया आरसीयूके इंडिया यूके तथा भारत के बेहतरीन अनुसंधानकर्ताओं को साथ लाता है और उनके बीच उच्च गुणवत्ता, उच्च प्रभाव वाले अनुसंधान सहयोगों की स्थापना करता है। नई दिल्ली के ब्रिटिश उच्चायोग में स्थित आरसीयूके इंडिया ने यूके तथा भारत व अन्य पक्षों के बीच 230 बिलियन पाउंड से अधिक के प्रयासों का सहवित्त पोषण किया है। अनुसंधान सहयोगों से यूके तथा भारतीय उद्योग के सहयोगी जुड़े हैं, जहां अनुसंधान में 100 से अधिक सहयोगी शामिल हैं। आरसीयूके इंडिया भारत के सात प्रमुख कोष प्रदाताओं के साथ सह-वित्त पोषित अनुसंधान गतिविधियों में सक्रिय रूप से शामिल है, जो कई सारे अनुसंधान विषयों तथा वैश्विक चुनौतियों से निपटने से जुड़ा है।
भारत में आरसीयूके का प्रतिनिधित्व ब्रिटिश उच्चायोग स्थित आरसीयूके इंडिया द्वारा किया जाता है। आरसीयूके यूके के सात शोध परिषदों की रणनीतिक साझेदारी है जो चिकित्सा और जैविक विज्ञान से लेकर खगोल विज्ञान, भौतिकी, रसायन विज्ञान और इंजीनियरिंग, सामाजिक विज्ञान, अर्थशास्त्र, पर्यावरण विज्ञान तथा कला व मानविकी जैसे शैक्षिक विषयों की सारे स्पेक्ट्रम को कवर करते हुए वार्षिक तौर पर अनुसंधान के क्षेत्र में लगभग 3 बिलियन डॉलर का निवेश करती है।
हम साथियों द्वारा समीक्षा किए गए ऐसे उत्कृष्ट अनुसंधानों का समर्थन करते हैं जिसका ब्रिटेन के विकास, समृद्धि और कल्याण पर प्रभाव हो। यूके के वैश्विक अनुसन्धान स्तर को बनाए रखने के लिए हम विभिन्न अवसरों की पेशकश करते हैं, अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देते हैं और दुनिया की सबसे अच्छी सुविधा और कार्यतंत्र प्रदान करते हैं। हम शोधकर्ताओं के प्रशिक्षण और कैरियर के विकास में भी सहयोग करते हैं और युवाओं को प्रेरित करने और व्यापक लोगों को अनुसंधान में शामिल करने के लिए उनके साथ काम करते हैं। आर्थिक विकास और सामाजिक कल्याण पर अनुसंधान के अधिकतम प्रभाव हेतु इनोवेट यूके, यूके हायर एजुकेशन फंडिंग काउंसिल, बिजनेस, गवर्नमेंट और चैरिटेबल ऑर्गेनाइजेशन जैसे अन्य शोध वित्तपोषकों के साथ मिलकर काम करते हैं।
सात यूके रिसर्च काउंसिल इस प्रकार से हैं:
- आर्ट्स एंड ह्युमैनिटीज़ रिसर्च काउंसिल (एएचआरसी)
- बायोटैक्नोलॉजी एंड बायोलॉजिकल साइन्सेज रिसर्च काउंसिल (बीबीएसआरसी)
- ईकोनॉमिक एंड सोशल रिसर्च काउंसिल (ईएसआरसी)
- इंजीनियरिंग एंड फिज़ीकल साइंसेज रिसर्च काउंसिल (ईपीएसआरसी)
- मेडिकल रिसर्च काउंसिल (एमआरसी)
- नेचुरल एन्वायरनमैण्ट रिसर्च काउंसिल (एनईआरसी)
- साइंस एंड टेक्नोलॉजी फ़ैसिलिटीज़ काउंसिल (एसटीएफसी)
डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी (डीबीटी),मिनिस्ट्री ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी, भारत का एक प्रमुख संगठन है, जो देश में जीव विज्ञान के अनुसंधान तथा विकास को बढ़ावा देता है। यह जैव-प्रौद्योगिकी के बड़े पैमाने पर इस्तेमाल को बढ़ावा देने, अनुसंधान तथा विकास तथा जीवविज्ञान में निर्माण को बढ़ावा देने, स्वायत्त संस्थानों को मदद करने, विश्व विद्यालयों को सहायता प्रदान करने तथा उद्योग गतिविधियों को बढ़ावा देने, आर एंड डी के लिए उत्कृष्टता केंद्रों की स्थापना तथा पहचान करने, मानव संसाधन विकास के लिए एकीकृत कार्यक्रम चलाने, विशिष्ट अंतर्राष्ट्रीय सहयोगों के लिए एक प्रमुख केंद्र के रूप में कार्य करने, आरएंडडी व उत्पादन में सहयोग हेतु इंफ्रास्ट्रक्चर सुविधाओं को स्थापित करने, सेल आधारित वैक्सीन के निर्माण व उपयोग को बढ़ावा देने तथा जैव प्रौद्योगिकी से जुड़ी जानकारी के संग्रह तथा प्रसार के लिए एक प्रमुख केंद्र के रूप में कार्य करने के लिए प्रतिबद्ध है।
भारत में न्यूटन फंड को न्यूटन-भाभा फंड के रूप में जाना जाता है। न्यूटन फंड 18 सहयोगी देशों में रिसर्च व इनोवेशन पार्टनरशिप को मजबूत बनाता है, ताकि वे देश अपने आर्थिक विकास व सामाजिक कल्याण को बढ़ावा दे सकें और दीर्घकालिक धारणीय विकास हेतु अपने अनुसंधान व नवाचार क्षमता का विकास कर सकें। इसके तहत यूके सरकार की ओर से वर्ष 2021 तक कुल 735 मिलियन पाउंड का योगदान किया जाएगा, जहां इतने ही संसाधनों को सहयोगी देशों से प्राप्त किया जाएगा। न्यूटन फंड को यूके डिपार्टमेंट फॉर बिजनेस, एनर्जी एंड इंडस्ट्रियल स्ट्रेटजी (बीईआईएस) द्वारा प्रबंधित किया जाता है और इसे रिसर्च काउंसिल्स, यूके ऐकेडमिक्स, ब्रिटिश काउंसिल्स, इनोवेट यूके तथा मेट ऑफिस समेत यूके के 15 सहयोगी देशों को मुहैय्या कराया जाता है।
मीडिया
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संचार प्रबंधक
रिसर्च काउंसिल यूके इंडिया
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