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‘यौन हिंसा से गुज़र चुके पीड़ितों के लिए ब्रिटिश सहायता प्राप्त प्रकाशन’

चेन्नई में ब्रिटिश उप-उच्चायुक्त भरत जोशी बुधवार 25 मार्च 2015 को यहाँ तमिल भाषा में प्रकाशित पुस्तकों का विमोचन करेंगे।

यह 2010 to 2015 Conservative and Liberal Democrat coalition government के तहत प्रकाशित किया गया था

इस सप्ताह चेन्नई में ब्रिटिश उप-उच्चायुक्त भरत जोशी तमिल भाषा में प्रकाशित पुस्तकों- ‘लोकेटिंग द सर्वाइवर इन द इंडियन क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम: डिकोडिंग द लॉ’ तथा ‘फ्रीक्वेंटली आस्क्ड क्वेश्चंस: अ गाइड फॉर सर्वाइवर ऑफ सेक्सुअल वायलेंस’ का विमोचन करेंगे। ये पुस्तकें महिला अधिकारों के लिए काम करने वाले एनजीओ, कार्यकर्ताओं (एक्टीविस्ट), वकीलों, प्रॉसेक्यूटर्स और प्रैक्टिशनर्स को यौन हिंसा के मुद्दे पर ब्रिटेन के व्यावहारिक मार्गदर्शन और संदर्भ के साथ मिलने वाली ब्रिटिश सहायता की प्रतिफल हैं।

भरत जोशी ने कहा:

मुझे इस बात की सचमुच खुशी है कि ब्रिटिश सरकार ने इन महत्वपूर्ण पुस्तकों के तमिल अनुवाद के लिए धन उपलब्ध कराया जो यौन हिंसा पीड़ितों के लिए व्यावहारिक मार्गदर्शन उपलब्ध कराती हैं और भारत में महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों की रक्षा हेतु काम करने वालों के मददगार हैं। हमें उम्मीद है कि ये प्रलेख वास्तविक रूप से परिवर्तनों लाने में सक्षम होंगे और साथ ही ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट में भारत की स्थिति को सुधारने में भी सहायक होंगे।

चेन्नई में इस कार्यक्रम की अध्यक्षता तमिलनाडु की वरिष्ठ हस्तियां करेंगे, जिनमें होंगे:

  • जस्टिस केपी शिवा सुब्रण्यम (अवकाश प्राप्त)
  • जस्टिस चंद्रू (अवकाश प्राप्त)
  • जयंति, आईएएस सदस्य, तमिलनाडु राज्य मानवाधिकार आयोग
  • सरस्वती रंगास्वामी, अध्यक्ष, तमिलनाडु बाल अधिकार आयोग

इस कार्यक्रम का आयोजन वूमंस कलेक्टिव चेन्नई और लॉयर्स कलेक्टिव नई दिल्ली द्वारा किया गया है, दोनों मानवाधिकार के अग्रणी विशेषज्ञ हैं।

आगे की जानकारी:

  • 2014 में भारत में ब्रिटिश उच्चायोग ने इन पुस्तकों का अंग्रेजी संस्करण प्रकाशित करवाया था। वूमंस कलेक्टिव और लॉयर्स कलेक्टिव जैसी महिला अधिकार संस्थाओं की सहभागिता में अंग्रेजी संस्करणों का हिन्दी, मराठी और तमिल में अनुवाद कराया गया ताकि जमीनी स्तर पर काम करने वाले व्यक्तियों और संस्थाओं को संदेश और मार्गदर्शन प्रदान किया जा सके। इन पुस्तकों का उद्देश्य यौन अपराधों के शिकार व्यक्तियों के लिए एक संयोजित, दक्ष और संवेदनशील न्याय अनुक्रिया प्रणाली उपलब्ध कराना है। रूपरेखा का लक्ष्य है आपराधिक न्याय प्रक्रिया के प्रत्येक चरण के जरिए इन पीड़ितों को सहायता और समर्थन प्रदान करना। चरणबद्ध मार्गदर्शन में शामिल है - वकीलों और प्रॉसेक्यूटर्स (अभियोक्ताओं) के लिए मार्गदर्शन और यह क्रिमिनल लॉ (संशोधन) अधिनियम 2013 द्वारा लाए गए ‘पीड़ितों के अधिकार’ का समग्र जानकारी उपलब्ध कराता है। यह इंडियन पीनल कोड में संशोधन पर भी चर्चा करता है। उम्मीद की जाती है कि ये पुस्तकें महिला पीड़िताओं के मामलों में कानूनी प्रक्रियाओं के सफल समापन में मददगार सिद्ध होंगी। ये पुस्तकें भारत में महिलाओं के विरुद्ध होने वाली यौन एवं अन्य हिंसा को रोकने हेतु जन हित का उच्चाधार तैयार करती हैं और भारत सरकार द्वारा पहले से किए जा रहे कार्यों को आधार बनाती हैं।

  • दुनिया भर में तीन में से एक महिला अपने जीवनकाल में मारपीट या यौन हिंसा का शिकार होती है। महिलाओं और लड़कियों के विरुद्ध हिंसा को रोकना अपने आप में एक प्रमुख लक्ष्य है और महिलाओं के लिए, उनके परिवारजनों समुदाय और देश के लिए विकास के अन्य परिणाम हासिल करने की दिशा में महत्वपूर्ण है। वैश्विक स्तर पर 50 प्रतिशत यौन हिंसा की घटनाएं 16 साल के कम उम्र की लड़कियों के साथ घटित होती हैं। महिलाओं और लड़कियों के विरुद्ध हिंसा से सहस्राब्दी विकास की लक्ष्य प्राप्ति की गति धीमी होती है और महिलाओं और लड़कियों के मानवाधिकार का हनन होता है। हिंसा के अनुभव से गुजरने वाली लड़कियों के लिए अपनी शिक्षा पूरी करने की संभावना कम हो जाती है। और इससे मातृत्व मृत्यु और एचआईवी एवं एड्स से पीड़ित होने के खतरे बढ़ जाते हैं।

  • हिंसा और असमानता को बढ़ावा देने वाली सामाजिक रूढ़ियों और परिपाटियों को चुनौती देने में मदद कर लड़कियों और महिलाओं के दैनिक जीवन में सुधार लाने तथा लड़कियों और महिलाओं को सुरक्षित रूप से आवाज उठाने की क्षमता हासिल करने में सहायता देने और महिला अधिकार को संरक्षित करने वाले कानूनी ढांचे को मजबूत बनाने के लिए ब्रिटेन प्रतिबद्ध है। लड़कियों और महिलाओं के विरुद्ध हिंसा के विरुद्ध खड़े होने और उन्हें रोकने के लिए ये महत्वपूर्ण हैं। पिछले 2 सालों में ब्रिटेन ने दुनिया भर में महिलाओं के विरुद्ध होने वाली हिंसा को रोकने के दिशा में ब्रिटेन ने बहुत काम किया है। लड़कियों और महिलाओं के विरुद्ध हिंसा को रोकने के लिए यूके डिपार्टमेंट फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (डीएफआईडी) अब 20 देशों में कार्यरत है और भारत में कुछ अत्यंत महत्वपूर्ण काम हो रहे हैं। डीएफआईडी बिहार सरकार को 2005 के घरेलू हिंसा अधिनियम के कार्यान्वयन में मदद कर रहा है जिसमें शामिल है नए बचाव अधिकारियों की नियुक्ति और उनका प्रशिक्षण, हेल्पलाइनों में सुधार और महिलाओं के लिए घर और कार्यस्थल को सुरक्षित बनाना। ‘ब्रिटेन का फॉरेन एंड कॉमनवेल्थ ऑफिस’ (एफसीओ) भी सीएआरई इंडिया और भारतीय कॉरपोरेट जगत के साथ मिलकर, भारत में एक अन्य परियोजना के लिए काम कर रहा है जिसका उद्देश्य है महिला सशक्तीकरण के सिद्धांतों को अपनाने में निजी क्षेत्र की प्रतिबद्धता को मजबूत करना।

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प्रकाशित 24 March 2015